तुझे गीत कहुँ, या मीत कहुँ
तुझे गीत कहुँ, या मीत कहुँ,
या फिर जग की रीत कहुँ।
तुझे दोस्त कहुँ, या कहुँ खुदा,
मेरे मन में सिर्फ तू ही तू है बसा।
कभी मैं निरास बनू अर्जुन सा,
तू सारथी बन गीता ज्ञान सुना।
मैं शिष्य बनू चन्द्रगुप्त जैसा,
तू गुरु चाणक्य कहाय।
मैं हूँ वन वन फिरता वानर,
तू राम बन मुझे हनुमान कहाय।
......Shivam Dhyani
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